आधुनिक हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
अनुक्रमणिका |
[बदलें] अंतर्राष्ट्रीय जगत में हिंदी
बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है. वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढी है वैसी किसी और भाषा में नहीं. विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकडों छोटे-बडे क़ेंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है. विदेशों से 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं. यू ए ई क़े 'हम एफ एम' सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं जिनमें बी बी सी, वायस ऑफ अमेरिका और जर्मनी के रेडियो कोलोन की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
[बदलें] विश्व में हिंदी की स्थिति
विश्व में हिंदी की स्थिति पर चर्चा करते हुए यह जान लेना भी आवश्यक है कि प्रयोक्ताओं की संख्या के आधार पर 1952 में हिंदी विश्व में पांचवे स्थान पर थी. 1980 के आसपास वह चीनी और अंग्रेजी क़े बाद तीसरे स्थान पर आ गई. 1991 की जनगणना में हिंदी को मातृभाषा घोषित करने वालों की संख्या के आधार पर पाया गया कि यह पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषियों की संख्या से अधिक है. इतना ही नहीं, डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल ने निरंतर 20 वर्ष तक भारत तथा विश्व में भाषाओं संबंधी आंकडों का विश्लेषण करके सिद्ध किया है कि विश्व में हिंदी प्रयोग करने वालों की संख्या चीनी से भी अधिक है और हिंदी अब प्रथम स्थान पर है. उसने विश्व की अंग्रेज़ी समेत अन्य सभी भाषाओं को पीछे छोड़ दिया है.
[बदलें] हिंदी की आवश्यकता
हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ अौर समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न न किए जाने पर भी विकास की गति बहुत तेज है. ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे संबंधित हिंदी शब्दों का भी विश्व की दूसरी भाषाओं में विलय हो रहा है. भारतीय संगीत (चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक) हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी. लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं. ऐसी संस्कृति जिसे पाने के लिए हिंदी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है.
[बदलें] विज्ञापन और मुनाफ़े की भाषा
1980 और 1990 के दशक में भारत में उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा औद्योगीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई. इसके परिणामस्वरूप अनेक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में आईं तो हिंदी के लिए एक खतरा दिखाई दिया था, क्योंकि वे अपने साथ अंग्रेजी लेकर आई थीं. मीडिया महारथी रुपर्ट मरडोक स्टार चैनल लेकर आए. वह अंग्रेजी में बडी धूमधाम से शुरू हुआ था. इसी तर्ज पर सोनी, वगैरह दूसरे चैनल भी अंग्रेजी में अपने कार्यक्रम लेकर भारत में आए. मगर इन सबको विवश होकर हिंदी की ओर मुड़ना पडा, क्योंकि इन्हें अपनी दर्शक संख्या बढानी थी, अपना व्यापार, अपना लाभ बढाना था. आज टी वी चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिंदी सबसे अधिक मुनाफ़े की भाषा है. कुल विज्ञापनों का लगभग 75 प्रतिशत हिंदी माध्यम में है.
[बदलें] लोकप्रियता की मिसाल
'कौन बनेगा करोडपति' की लोकप्रियता ने मीडिया के क्षेत्र में हिंदी के झंडे गाड दिए, कमाई तथा प्रसिद्धि के अनेक कीर्तिमान भंग कर दिए तथा आने वाले समय में हिंदी के सुखद भविष्य के सपने जगा दिए हैं. आज सभी चैनल तथा फ़िल्म निर्माता अंग्रेजी क़ार्यक्रमों और फ़िल्मों को हिंदी में डब करके प्रस्तुत करने लगे हैं. जुरासिक पार्क जैसी अति प्रसिध्द फ़िल्म को भी अधिक मुनाफ़े के लिए हिंदी में डब किया जाना जरूरी हो गया. इसके हिंदी संस्करण ने भारत में इतने पैसे कमाए जितने अंग्रेजी संस्करण ने पूरे विश्व में नहीं कमाए थे. आज भारत में सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाएं तथा उनके पाठक हिंदी में हैं. सर्वाधिक फ़िल्में हिंदी में बनती हैं.
[बदलें] हिंदी की शक्ति एवं सामर्थ्य
हिंदी भारत की नहीं, पूरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र की भाषा है. यह विशाल क्षेत्र अधिकतर मध्यम वर्ग को अपने में समेटे है. इस मध्यम वर्ग की क्रय-शक्ति पिछले कुछ वर्षों में बहुत बढी है. खाडी देशों का मजदूर वर्ग जो भारत पाकिस्तान बंगलादेश आदि देशों से आता है सबसे अधिक सहजता हिंदी बोलने में समझता हैं. वह यहां सादा जीवन जीता है लेकिन अपनी आमदनी का एक बडा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों की खरीद में व्यय करता है. आज अपने माल के प्रचार-प्रसार, पैकिंग, गुणवत्ता आदि के लिए हिंदी को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता है और उनकी यही विवशता हिंदी की शक्ति एवं सामर्थ्य की द्योतक है.
[बदलें] हिंदी के प्रति गंभीर दुनिया
भारतीयों ने अपनी कडी मेहनत, प्रतिभा और कुशाग्र बुध्दि से आज विश्व के तमाम देशों की उन्नति में जो सहायता की है उससे प्रभावित होकर अनेक देशों के शासक वर्ग और व्यापारी वर्ग की दृष्टि में भारतीय संस्कृति और भाषा के प्रति रुचि, आकर्षण और श्रध्दा की भावना भर दी है. वे समझ गए हैं कि भारतीयों से अच्छे संबंध बनाने के लिए हिंदी सीखना कितना जरूरी है. हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 114 मिलियन डॉलर की एक विशेष राशि अमरीका में हिंदी, चीनी और अरबी भाषाएं सीखाने के लिए स्वीकृत की है. इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी के महत्व को विश्व में कितनी गंभीरता से अनुभव किया जा रहा है.
[बदलें] सहयोग की आवश्यकता
आज हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी का वर्चस्व तोड डाला है और हिंदीभाषी करोड़ों की आबादी कंप्यूटर का प्रयोग अपनी भाषा में कर सकती हैं. आवश्यकता इस बात की है, कि हिंदी के प्राध्यापक, साहित्यकार, संपादक एवं प्रकाशक कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग करें और इसके सर्वांगीण विकास के लिए कदम बढाएं. प्रवासी भारतीयों में हजारों लोग हिंदी के विकास में संलग्न हैं. जिसमें से तीन सौ से अधिक से आप वेब पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं. धैर्य के साथ इनसे संपर्क बनाते हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
[बदलें] स्रोत
- पत्रिका विदाउट रिजर्व पृष्ठ-11,
- दैनिक हिंदुस्तान, 25 अप्रैल 2005,
- राजभाषा भारती, स्वर्ण जयंती अंक: 1999-2000,
- आजकल मई 2005 लेख कंप्यूटर और हिंदी _अखिलेश झा,
- आजकल सितंबर 2005 लेख हिंदी ही क्यों _ रवि शर्मा
[बदलें] यह भी देखें
- ब्रिटेन का प्रवासी हिंदी साहित्य
- ब्रिटेन के प्रवासी हिंदी लेखक
- अमेरिका का प्रवासी हिंदी साहित्य
- यू एस ए के प्रवासी हिंदी लेखक
- कैनेडा का प्रवासी हिंदी साहित्य
- कैनेडा के प्रवासी हिंदी लेखक
- खाड़ी देशों का प्रवासी हिंदी साहित्य
- खाड़ी देशों के प्रवासी हिंदी लेखक
- आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
- आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास
- आधुनिक हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास
- हिंदी साहित्य