ओशो रजनीश
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
"मैं तुम्हें कोई लक्ष्य नहीं दे रहा। मैं तुम्हें केवल दिशा दे सकता हूं- जाग्रत, जीवन से स्पंदित, अज्ञात, सदा विस्मयपूर्ण,बिना किसी पूर्वानुमान के। मैं तुम्हें कोई नक्शा नहीं दे रहा। मैं तुम्हें तलाश की महा- जिज्ञासा दे सकता हूं। हां, कोई नक्शा नहीं चाहिये। तलाश के लिये महा- अभीप्सा, महा- आकांक्षा चाहिये। फिर मैं तुम्हें अकेला छोड़ देता हूं। फिर तुम अकेले निकल पड़ते हो- महा- यात्रा पर जाने के लिये, अनंत की यात्रा पर निकल पड़ो और धीरे- धीरे इस पर श्रद्धा करना सीखो। स्वयं को जीवन के भरोसे छोड़ दो।"