जाल-पत्रिका
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
जाल-पत्रिका छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर प्रौद्योगिक (इलेक्ट्रानिक) माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। चिट्ठे (blog) और जालपत्रिका में विशेष अंतर यही है कि चिट्ठों के प्रकाशन का समय निर्धारित नहीं होता [१]।
निरंतर नामक जाल पत्रिका के उदय के पश्चात ब्लॉगज़ीन शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप [२]।
कुछ जाल पत्रिकाएं परंपरागत रूप से मुद्रित भी होती हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई पत्रिकायें अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखती हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है [३]।
माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा अंतर्जाल पत्रिकाएं प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और जूमला या ड्रूपल जैसे सी.एम.एस भी बाज़ार में उपलब्ध हैं।
[बदलें] यह भी देखें
- अंतर्जाल (internet) का इतिहास
- इलेक्ट्रानिक पत्रिका
- हिंदी चिट्ठे (blogs)
- जाल पत्रिकाओं की सूची
[बदलें] उद्धरण
- ↑ "बातों बातों में", शब्दांजलि, 01 अक्टुबर, 2005।
- ↑ "परिचय", निरंतर।
- ↑ "Differences Between Print Design and Web Design", Alertbox, 24 जनवरी, 1999।
श्रेणियाँ: हिन्दी | साहित्य | इंटरनेट | जाल-पत्रिका