"माता-पिता से बड़ा स्थान ? का"
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
गुरूर्बह्मा गुरूर्विषणुः,गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात्परं ब्रह्म,तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
भारतीय संस्कृति में माता-पिता से भी बड़ा स्थान गुरू को दिया गया है। परन्तु कुछ शिक्षकों ने इस स्थान पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। हाल ही के कुछ चर्चीत मामले ने हमें इस विषय पर सोचने के लिए मजबुर कर दिया है। कई मामलों में शिक्षकों ने बच्चों की नाजुकता का शोषण कर उनके भविष्य को अधंकारमय बना दिया।
शिक्षकों के इस कुकर्म को उच्च न्यायलय भले ही इसे प्यार के रुप में परिभाषित करती हो, यह कार्य समाज की निगाहों में अमान्य है,और इस तरह के शिक्षक समाज के अपराधी हैं। इस तरह के शिक्षकों को कानून में कडी से कडी सजा देने का प्रावधान किया जाना चाहिऐ।