दिवाली
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हिन्दूओं के लिए, दिवाली सिर्फ़ एक दीप के त्योहार नहीं है, लेकिन एक विशेष occasion है गणेशजी, लक्ष्मी और महाबालीजी को worship करने लिए। जैनों के लिए, यह एक occasion है महाविराजी को remember करने लिए।
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अवलोकनकारी | धर्मीय: हिन्दूओं, सीखों और जैनों। अन्य हिन्दुस्तानीयाँ के लिए यह सिर्फ़ एक संस्कृतिक त्योहार है। |
प्रकार | धर्मीय, भारतीय |
अभिप्राय | Celebrate life and strengthen relationships |
तारीख़ | New moon day of Kartika, although the celebrations begin two days prior and end two days after that date। |
२००६ तारीख़ | 21 अक्तूबर |
२००७ तारीख़ | 9 नवंबर |
२००८ तारीख़ | 28 अक्तूबर |
उत्सव | Decorating homes with lights, Fireworks, Gift-giving |
दिवाली हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है । दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को मनायी जाती है । अधिकतर यह अंग्रेज़ी कैलन्डर के अनुसार अक्तूबर या नवम्बर महीने में पड़ती है ।
दीपावली दीपों का त्योहार है | इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं । 'दीपावली' संस्कृत का शब्द है इसका अर्थ है दीपकों की अवलि अर्थात् लड़ी । दिवाली अन्धेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है | भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है | दिवाली यही चरितार्थ करती है - असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय ।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे ३ अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं।
- श्री राम के रावण को मार कर अयोध्या लौटने की याद में
- श्री कृष्ण के नरकासुर को मारने की याद में
- यह दो कहानियाँ दुष्टता की नाश का वर्णन करती हैं। पर इन दोनों कहानियों से बिलकुल भिन्न, दिये इसलिये भी जलाये जाते हैं, कि धन की देवी लक्ष्मी को घर के अन्दर आने का रास्ता मालूम हो!
हर प्रांत या क्षेत्र में दिवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है | लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है | लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं ; नये कपड़े पहनते हैं । सब मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं । घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है | बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं |
यह त्योहार सिक्खों और जैनों के लिये भी महत्वपूर्ण है। जैनों के लिये इसलिए कि इस दिन महावीर जी ने मोक्ष (या निर्वाण) पाया था। और सिक्खों के लिये इसलिए कि दिवाली के दिन ही अमृत्सर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा १६१९ में दिवाली के दिन सिक्खों के छ्टे गुरु हरगोबिन्द सिंघ जी को जेल से रिहा किया गया था।