अर्थशास्त्र
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यह पृष्ठ अर्थशास्त्र विषय से संबन्धित है। कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र ग्रन्थ के लिये यहां देखें।
अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ( धन ) और शास्त्र की सन्धि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है धन क अध्ययन।
लियोनेल रोबिंसन के अनुसार आधुनिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है,"वह विज्ञान जो मानव स्वभाव का वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों और उनके प्रयोग के मध्य अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है।" दुर्लभता का अर्थ है कि उपलब्ध संसाधन सभी मांगों और जरुरतों को पुरा करने में असमर्थ हैं। दुर्लभता और संसाधनों के वैकल्पिक उपयोगों के कारण ही अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता है। अतएव यह विषय प्रेरकों और संसाधनों के प्रभाव में विकल्प का अध्ययन करता है।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] वर्गीकरण
•व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र
•सकारात्मक अर्थशास्त्र(जो हो रहा है) एवं मानक अर्थशास्त्र (जो होना चाहिए )
•मुख्यधारा अर्थशास्त्र एवं अपारम्परिक अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है । अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य , कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि।
[बदलें] इतिहास
अर्थशास्त्र पर लिखी गयी प्रथम पुस्तक कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र है। यद्यपि उत्पादन और वितरण के बारे में परिचर्चा का एक लम्बा इतिहास है,किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्र का जन्म एडम स्मिथ की किताब द वेल्थ आफ़ नेशन्स के 1776 में प्रकाशन के समय से माना जाता है।
[बदलें] विषयवस्तु
अर्थशास्त्र को कई प्रकारों से विभाजित किया जा सकता है, किन्तु किसी अर्थव्यवस्था का निम्नलिखित दो तरीकों से विश्लेषण किया जाता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत व्यक्तिगत इकाइयों (जिनमें व्यापार एवं परिवार शामिल हैं ) और सीमित बाजार में उनके अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र अन्तर्गत समूचे देश की अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत सकल घरेलू उत्पाद, रोजगार, मुद्रास्फीति, उपभोग,निवेश जैसी राशियों का अध्ययन किया जाता है।
[बदलें] मूल अवधारणायें
[बदलें] मूल्य
मूल्य की अवधारणा अर्थशास्त्र में केन्द्रीय है। इसको मापने का एक तरीका वस्तु का बाजार भाव है। एडम स्मिथ ने श्रम को मूल्य के मुख्य श्रोत के रुप में परिभाषित किया। "मूल्य के श्रम सिद्धान्त" को कार्ल मार्क्स सहित कई अर्थशास्त्रियों ने प्रतिपादित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी सेवा या वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन में प्रयुक्त श्रम के बराबर होत है। अधिकांश लोगों का मानना है कि इसका मूल्य वस्तु के दाम निर्धारित करता है। दाम का यह श्रम सिद्धान्त "मूल्य के उत्पादन लागत सिद्धान्त" से निकटता से जुड़ा हुआ है।
[बदलें] माँग और आपूर्ति
प्रारुप बताता है कि किस तरह आपूर्ति और मॉग के सन्तुलन से कीमत में परिवर्तन होता है।
में माँग और आपूर्ति की सहायता से पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाजार में बेचे गये वस्तुओं कीमत और मात्रा की विवेचना , व्याख्या और पुर्वानुमान लगाया जाता है। यह अर्थशास्त्र के सबसे मुलभूत प्रारुपों में से एक है। क्रमश: बड़े सिद्धान्तों और प्रारूपों के विकास के लिए इसका विशद रुप से प्रयोग होता है।
माँग किसी नियत समयकाल में किसी उत्पाद की वह मात्रा है, जिसे नियत दाम पर उपभोक्ता खरीदना चाहता है और खरीदने में सक्षम है।माँग को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रुप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और इच्छित मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।
आपूर्ति वस्तु की वह मात्रा है जिसे नियत समय में दिये गये दाम पर उत्पादक या विक्रेता बाजार में बेचने के लिए तैयार है। आपूर्ति को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रुप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और आपूर्ति की मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।
[बदलें] कीमत
किसी वस्तु की कीमत किसी बाजार में ग्राहक और विक्रेता के बीच उसकी विनिमय की दर है।