वीरप्पन
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वीरप्पन के नाम से प्रसिद्ध कूज मुनिस्वामी वीरप्पन (1952-2004) दक्षिण भारत का कुख्यात चन्दन तस्कर था । चन्दन की तस्करी के अतिरिक्त वह हाथीदांत की तस्करी, हाथियों के अवैध शिकार, पुलिस तथा वन्य अधिकारियों की हत्या व अपहरण के कई मामलों का भी अभियुक्त था । कहा जाता है कि सरकार ने कुल 20 करोड़ रुपये उसे पकड़ने के लिए खर्च किए (प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़) ।
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[बदलें] बाल्यकाल
कूज मुनिस्वामी वीरप्पा गौड़न उर्फ़ वीरप्पन का जन्म 18 जनवरी 1952 को प्रातः 8 बजकर 17 मिनट पर गोपीनाथम नामक ग्राम में एक चरवाहा परिवार में हुआ था । बचपन के दिनों वह मोलाकाई नाम से भी जाना जाता था । 18 वर्ष की उम्र में वह एक अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया । अगले कुछ सालों में उसने अपने एक प्रतिद्वंदी गिरोह का खात्मा किया और सम्पूर्ण जंगल का कारोबार उसके हाथों में आ गया । उसने चंदन तथा हाथीदांत से पैसा कमाया ।
[बदलें] वीरप्पन के कृत्य
कहा जाता है कि उसने कुल 2000 हाथियों को मार डाला, पर उसकी जीवनी लिखने वाले सुनाद रघुराम के अनुसार उसने 200 से अधिक हाथियों का शिकार नहीं किया होगा ।
उसका 40 लोगों का गिरोह, अपहरण तथा हत्या की वारदात करते रहते थै जिनके शिकार प्रायः पुलिसकर्मी या वन्य अधिकारी होते थे । वीरप्पन को लगता था कि उसकी बहन मारी तथा उसके भाई अर्जुनन की हत्या के लिए पुलिस जिम्मेवार थी ।
वीरप्पन प्रसिद्ध व्यक्तियों की हत्या तथा अपहरण के बल पर अपनी मांग रखने के लिए भी कुख्यात था । 1987 में उसने एक वन्य अधिकारी की हत्या कर दी । 10 नवंबर 1991 को उसने एक आई एफ एस ऑफिसर पी श्रीनिवास को अपने चंगुल में फंसा कर उसकी निर्मम हत्या कर दी । इसके अतिरिक्त 14 अगस्त 1992 को मीन्यन (कोलेगल तालुक) के पास हरिकृष्ण (आईपीएस) तथा शकील अहमद नामक दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों समेत कई पुलिसकर्मियों की हत्या तब कर दी जब वे एक छापा डालने जा रहे थे ।
[बदलें] आसपास
अपने गांव गोपीनाथम में उसकी छवि रॉबिन हुड की तरह थी । गांव के निवासी उसके लिएएक छत्र की तरह काम करते थे तथा उसे पुलिस की गतिविधियों के बारे में सूचनाएं दिया करते थे । वे उसके गिरोह को भोजन तथा वस्त्र भी मुहैया कराते थे । ऐसा कहा जाता है कि लोग ऐसा वीरप्पन से डरकर करते थे । वीरप्पन ने गांववालों को कभी-कभार पैसे से मदद इसलिए की कि वो उसे पुलिस की गिरफ्त में आने से बचा सकें । उसने उन ग्रामीणों को क्रूरता से मार डाला जो पुलिस को उसके बारे में सूचनाएं दिया करते थे ।
उसे 1986 में एक बार पकड़ा गया था पर वह भाग निकलने में सफल रहा । वन्य जीवन पर पत्रकारिता करने वाले फोटोग्राफर कृपाकर, जिसे उसने एक बार अपहृत किया था, कहते हैं कि उसने अपने भागने के लिए पुलिस को करीब एक लाख रूपयों की रिश्वत दी थी ।
[बदलें] व्यक्तिगत जीवन
उसने एक चरवाहा परिवार की कन्या, मुत्थुलक्षमी से 1991 में शादी की । उसकी तीन बेटियां थीं - युवरानी, प्रभा तथा तथाकथित रूप से एक और जिसकी उसने गला घोंट कर हत्या कर दी । वीरप्पन ने कर विभाग के कैंटीन(सेंट्रल एक्साईज़ कैंटीन) में भी काम किया था ।
वीरप्पन को वन्य जीवन की अच्छी कलाकारी आती थी और वो कई पक्षियों की आवाज निकाल लेता था । इसने उसे कई बार गिरफ्त में आने से बचाया । ऐसा भी कहा जाता था कि उसने अंग्रेज़ी की फिल्म द गॉडफ़ादर कोई 100 बार देखी है । उसे कर्नाटक संगीत काफी प्रिय था और वो एक धार्मिक आदमी था तथा प्रतिदिन प्रार्थना करता था । उसने सरकार से कई बार सम्पर्क किया और क्षमादान की मांग की । उसकी ईच्छा थी कि वो एक अनाथाश्रम खोले तथा राजनीति से जुड़े (फूलन देवी से प्रेरित होकर)। उसे अपनी लम्बी घनी मूंछे बहुत पसन्द थीं । वह माँ काली का बहुत भक्त था और कहा जाता है कि उसने एक काली मंदिर भी बनवाया था ।
[बदलें] विशेष कार्य बल
1990 में कर्नाटक सरकार ने उसे पकड़ने के लिए एक विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया । जल्द ही पुलिसवालों ने उसके कई आदमियों को पकड़ लिया । फरवरी, 1992 में पुलिस ने उसके प्रमुख सैन्य सहयोगी गुरुनाथन को पकड़ लिया । इसके कुछ महीनों के बाद वीरप्पन ने चामाराजानगर जिला के कोलेगल तालुक के एक पुलिस थाने पर छापा मारकर कई लोगों की हत्या कर दी और हथियार तथा गोली बारूद लूटकर ले गया । 1993 में पुलिस ने उसकी पत्नी मुत्थुलक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया । अपने नवजात शिशु के रोने तथा चिल्लाने से वो पुलिस की गिरफ्त में ना आ जाए इसके लिए उसने अपनी संतान की गला घोंट कर हत्या कर दी ।
[बदलें] मृत्यु
18 अक्टूबर 2004 को उसे मार दिया गया । उसके मरने पर भी कई तरह के विवाद हैं ।उसका प्रशिक्षित कुत्ता तथा बंदर उसके मरने के बाद प्रकाश में आए । उसका कुत्ता मथाई कई मामलों में गवाह की भूमिका निभा रहा है । वह भौंक कर अपनी भावना व्यक्त करता है ।
वीरप्पन की पत्नी का कहना है कि उसे कुछ दिन पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था । वीरप्पन ने कई बार चेतावनी दी थी कि यदि उसे पुलिस के खिलाफ किसी मामले में फंसाया जाता है तो वो हर एक पुलिसवाले की ईमानदारी पर उंगली उठा सकता है, इस कारण से उसकी हत्या कर दी गई ।
[बदलें] रोचक तथ्य
- वीरप्पन वन्नियार जाति का था । पट्टलि मक्कल काच्चि (पीएमके) के कई लोग जो कि उस जाति के थे, ने अपना झंडा उसकी मृत्यु पर आधा ही चढ़ाया था ।
- तमिल की साप्ताहिक पत्रिका नक्कीरण के आर गोपाल ने जब वीरप्पन का साक्षात्कार लिया था तो वो एक स्टार(प्रसिद्ध हस्ती) बन गए थे ।
- वीरप्पन की मौत के बाद रामगोपाल वर्मा की फिल्म लेट्स कैच वीरप्पन (चलो वीरप्पन को पकड़ें) का नाम बदलकर लेट्स किल वीरप्पन(चलो वीरप्पन को मार गिराएं) कर दिया गया ।
- हिन्दी, तमिल तथा कन्नड़ की कई फिल्मों के किरदार वीरप्पन पर आधारित हैं । हिन्दी में सरफ़रोश (वीरन), जंगल (दुर्गा सिंह) कन्नड़ मे वीरप्पन तथा तमिल में कैप्टन प्रभाकरन काफी प्रसिद्ध फिल्मों में से हैं ।
- सुनाद रघुराम ने वीरप्पन की जीवनी पर एक किताब लिखी है - Veerappan: India's Most Wanted Man (वीरप्पन: भारत का सर्वाधिक वांछित व्यक्ति) । रामगोपाल वर्मा की फिल्म लेट्स किल वीरप्पन (निर्माणाधीन) इसी किताब के एक अध्याय पर बन रही है ।