ईसा मसीह
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ईसा मसीह (अथवा यीशु मसीहा या जीसस क्राइस्ट, en:Jesus Christ, इब्रानी : येशुआ') ईसाई धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं । ईसाई उनको परमपिता-ईश्वर का पुत्र मानते हैं और ईसाई त्रिमूर्ति का दूसरा सदस्य भी । ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभसन्देश -- मत्ती , लूका, युहन्ना और मर्कुस) में दिये गये हैं ।
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[बदलें] जन्म
माना जाता है कि ईसा का जन्म 4 ईसापूर्व में इस्राइल के नज़रथ प्रान्त के एक गाँव बत्लहम में बहुत कठिन परिस्थितियों में हुआ था । उनकी माता मारिया (मरियम) उनके जन्म के समय कुमारी थीं (नाम-मात्र के लिये उनकी युसुफ़ से शादी हो गयी थी) । बाइबिल के मुताबिक मारिया को ईश्वर द्वारा सन्देश मिला था कि उनके गर्भ से ईश्वरपुत्र जन्म लेगा । यहूदी धर्म के नबियों ने सदियों पहले एक उद्धारक या मुक्तिदाता (मसीहा) के आने की भविष्यवाणी की थी । ईसा और उनका परिवार जन्मजात यहूदी थे ।
[बदलें] धर्म-प्रचार
तीस साल की उम्र में ईसा ने इस्राइल की जनता को यहूदी धर्म का एक नया रूप प्रचारित करना शुरु कर दिया । उन्होंने कहा की ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है और उस वक्त के वर्त्तमान यहूदी धर्म की पशुबलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता । यहूदी ईश्वर की परमप्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी राष्ट्रों को प्यार करता है । इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिये और क्षमा सरना सीखना चाहिये । उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वो ही ईश्वर के पुत्र हैं, वो ही मसीहा (उद्धारक) हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं । यहूदी धर्म में क़यामत के दिन का कोई ख़ास उल्लेख या महत्त्व नहीं था, पर ईसा ने क़यामत के दिन पर ख़ास ज़ोर दिया -- क्योंकि उसी वक्त स्वर्ग या नरक इंसानी आत्मा को मिलेगा । ईसा ने कई चमत्कार भी किये ।
[बदलें] विरोध, मृत्यु और पुनरुत्थान
यहूदियों के कट्टरपन्थी रब्बियों (धर्मगुरुओं) ने ईसा का भारी विरोध किया । उन्हें ईसा में मसीहा जैसा कुछ ख़ास नहीं लगा । उन्हें अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था । ख़ुद को ईश्वरपुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था । इसलिये उन्होंने उस वक़्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को इसकी शिकायत कर दी । रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर रहता था । इसलिये कट्टरपन्थियों को प्रसन्न करने के लिये पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मृत्युदण्ड की दर्दनाक सज़ा सुनाई । ईसाइयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय ईसा मसीह ने सभी इंसानों के पाप स्वयं पर ले लिये थे और इसलिये जो भी ईसा में विश्वास करेगा, उसे ही स्वर्ग मिलेगा । मृत्यु के तीन दिन बाद ईसा वापिस जी उठे और 40 दिन बाद सीधे स्वर्ग चले गये । ईसा के 12 शिष्यों ने उनके नये धर्म को सभी जगह फैलाया । यही धर्म ईसाई धर्म कहलाया ।
[बदलें] इस्लाम और यहूदी मत
इस्लाम में ईसा को एक आदरणीय नबी (मसीहा) माना जाता है, पर ईश्वर-पुत्र या त्रिमूर्ति का सदस्य नहीं , और उनकी पूजा पर मनाही है । यहूदी ईसा को न तो मसीहा मानते हैं न ईश्वर-पुत्र । वो अपने मसीहा का आज भी इंतज़ार करते हैं ।